M.K.SINGH( PRESS)

गुरुवार, 5 अप्रैल 2018

खण्ड- 1 संचार की भूमिका।

                                                                   संचार

                                  (Communication)

                   संचार (Communication) शब्द लैटिन भाषा के कम्युनिस (Communis) से बना है जिसका अर्थ है to impart, make common । मन के विचारों व भावों का आदान-प्रदान करना अथवा विचारों को सर्वसामान्य बनाकर दूसरों के साथ बाँटना ही संचार है। संचार शब्द, अंग्रेजी भाषा के शब्द का हिन्दी रूपान्तरण है। जिसका विकास Commune शब्द से हुआ है। जिसका अर्थ है अदान-प्रदान करना अर्थात बाँटना। संचार एक आधुनिक विषय है। मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, शिक्षाशास्त्र, समाज कार्य जैसे विषयों से इसका प्रत्यक्ष सम्बन्ध है।                 
                    “ जब दो या दो से अधिक व्यक्ति आपस में कुछ सार्थक चिह्नों, संकेतों या प्रतीकों के माध्यम से विचारों या भावनाओं का आदान-प्रदान करते हैं, तो उसे संचार कहते हैं।“
Communication refers to the act by one or more persons of sending and receiving messages – distorted by noise-with some effect and some opportunity for feedback
         
                          हमारे पास संचार के सबसे प्रबल माध्यम में हमारी आवाज और भाषा है और इसके वाहक के रूप में पत्र, टेलीफोन, फैक्स, टेलीग्राम, मोबाइल तथा इन्टरनेट इत्यादि हैं | संचार का उद्देश्य संदेशो तथा विचारो का आदान प्रदान है| सम्पूर्ण मानव सभ्यता इसी संचार पर आधारित है तथा इस संचार को तेज व सरल बनाने के लिए सूचना प्रोद्योगिकी का जन्म हुआ| कंप्यूटर, मोबाइल, इन्टरनेट सबका अविष्कार इसी संचार के लिए हुआ | इन्टरनेट एक ऐसा सशक्त माध्यम है जिसके द्वारा हम पूरी दुनिया में कही भी व किसी भी समय कम से कम समय व कम से कम खर्च में सूचनाओ व विचारो का आदान प्रदान कर सकते हैं|


संचार की अवधारणा 
( Concept of communication ):-
                                                                                    मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और संचार करना उसकी प्रकृति है। अपने भावों व विचारों का अदान-प्रदाHन करना उसकी जन्मजात प्रकृति है। ऐसा माना जा सकता है कि मानव के अस्तित्व में आने के साथ ही संचार की आवश्यकता का अनुभव हो गया हो गया होगा। जो कि मनुष्य की मूलभूत आवश्यकता हो गया। संचार किसी भी समाज के लिए अति आवश्यक है। जो स्थान शरीर के लिये भोजन का है, वही समाज व्यवस्था में संचार का है। मानव का शारीरिक एवं मानसिक विकास पूरी तरह से संचार-प्रक्रिया से जुड़ा रहता है । जन्म से मृत्यु तक मनुष्य एक दूसरे से बातचीत के माध्यम से सम्बद्ध रहता है, एक दूसरे को जनता है, समझता है तथा परिपक्व होता है। संचार को मानव सम्बन्धों की नींव कहा जा सकता है। समाज वैज्ञानिकों का मानना है कि किसी भी परिवार, समूह, समुदाय तथा समाज में यदि मनुष्यों के बीच परस्पर वार्तालाप बन्द हो जाये तो सामाजिक विघटन की प्रक्रिया आरम्भ हो जायेगी एवं मानसिक विकृतियाँ जन्म लेने लगेंगी।

● विभिन्न विद्वानों द्वारा दी गई संचार की परिभाषाएँ
(Definitions of communication given by various scholars) :-

         ★ संचार एक शक्ति है जिसमें एक एकाको संप्रेषण दूसरे व्यक्तियो को व्यवहार बदलने हेतु प्रेरित करता है।
-हावलैंड
★ वाणी, लेखन या संकेतों के द्वारा विचारों अभिमतों अथवा सूचना का विनिमय करना संचार कहलाता है।
-रॉबर्ट एंडरसन
★ संचार एक पक्रिया है जिसमें सामाजिक व्यवस्था के द्वारा सूचना, निर्णय और निर्देश दिए जाते है और यह एक मार्ग है जिसमें ज्ञान, विचारों और दृष्टिकोणों को निर्मित अथवा परिवर्तित किया जाता है।
-लूमिक और बीगल
★ संचार समानूभूति की प्रक्रिया या श्रृंखला है जो कि एक संस्था के सदस्यों को उपर से नीचे तक और नीचे से उपर तक जोड़ती है।
-मैगीनसन
★ किसी एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को अथवा किसी एक व्यक्ति से कई व्यक्तियों को कुछ सार्थक चिन्हों, संकेतों या प्रतीकों के सम्प्रेषण से सूचना, जानकारी, ज्ञान या मनोभाव का आदान-प्रदान करना संचार है।
-प्रो. रमेश जैन


संचार का महत्व ( Communication of the importance ) :-
                                                                                                                                                   संचार एक द्वि-मार्गीय प्रक्रिया है जहाँ पर विचारों का आदान-प्रदान होता है । बिना संचार के मानवीय संसाधनों को गतिमान किया जाना असंभव है । संचार को प्रेषित करने के अनेक माध्यम है । संचार को तभी सफल माना जा सकता है जब प्रेषित सन्देश को प्राप्तकर्ता अर्थनिरूपण कर उसकी प्रतिपुष्टि करें । मानवीय जीवन के विभिन्न पहलुओं में संचार का अत्याधिक महत्व है। प्रशासन में संचार के महत्व को स्वीकारते हुए एल्विन डाड लिखते है कि ‘‘संचार प्रबन्ध की मुख्य समस्या है ।’’ थियो हैमेन का कहना है कि ‘‘प्रबन्धकीय कार्यों की सफलता कुशल संचार पर निर्भर करती है।“ सुओजानिन के अनुसार’ अच्छा संचार प्रबन्ध के एकीकृत दृष्टिकोण हेतु बहुत महत्वपूर्ण है।“ संचार के महत्व को निम्न बिन्दुओं के सन्दर्भ में भली प्रकार समझा जा सकता है-
१-नियोजन एवं संचार ( Planning and communication ) :-
                                                                                              नियोजन एक अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं प्राथमिक कार्य है लक्ष्य की प्राप्ति कुशल नियोजन के प्रभावी क्रियान्वयन पर निर्भर करती है। संचार योजना के निर्माण एवं उसके क्रियान्वयन दोनों के लिये अनिवार्य ह। कुशल नियोजन हेतु अनेक प्रकर की आवश्यक एवं उपयोगी सूचनाओं, तथ्यों एवं आँकड़ों और कुशल क्रियान्वयन हेतु आदेश, निर्देश एवं मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है ।
२-संगठन एवं संचार  ( Organization & communication ):-
                                                                                              अधिकार एवं दायित्वों का निर्धारण एवं प्रत्यायोजन करना और कर्मचारियों को उनसे अवगत कराना संगठन के क्षेत्र में आते है ये कार्य भी बिना संचार के असम्भव है। बर्नाड के शब्दों में “संचार की एक सुनिश्चित प्रणाली की आवश्यकता संगठनकर्ता का प्रथम कार्य है।’’
३-अभिप्रेरणा एवं संचार (Motivations and communication) :- 
                                                                                                    प्रबन्धकों द्वारा कर्मचारियों को अभिप्रेरित किया जाता है, जिसके लिए संचार की आवश्यकता पड़ती है। ड्रकर के शब्दों में “ सूचनायें प्रबन्ध का एक विशेष अस्त्र है प्रबन्धक व्यक्तियों को हॉकने का कार्य नहीं करता वरन वह उनको अभिप्रेरित, निर्देशित और संगठित करता है। ये सभी कार्य करने हेतु मौखिक अथव लिखित शब्द अथवा अंकों की भाषा ही उसका एकमात्र औजार होती है ।’’
४-समन्वय एवं संचार (Coordination & communication ) :– 
                                                                                                 समन्वय एक समूह द्वारा किये जाने वाले प्रयासों को एक निश्चित दिशा प्रदान करने हेतु आवश्यक होता है । न्यूमैन के अनुसार “ अच्छा संचार समन्यव में सहायक होता है।’’ कुशिग नाइलस लिखती है कि “समन्वय हेतु अच्छा संचार अनिवार्यता है।“ बर्नार्ड के शब्दों में ‘‘संचार वह साधन है जिसके द्वारा किसी संगठन में व्यक्तियों को एक समान-उद्देश्य की प्राप्ति हेतु परस्पर संयोजित किया जा सकता है।“
५-नियन्त्रण एंव संचार  ( Control and communication) ;-
                                                                                             नियन्त्रण द्वारा कुशल प्रबंधन यह जानने प्रयास करता है कि कार्य पूर्व निश्चित योजनानुसार हो रहा है अथवा नही ? इसके अतिरिक्त वह त्रुटियों एवं विचलनों को ज्ञात कर यथाशीध्र ठीक करने और उनकी पुनरावृत्ति को रोकने का प्रयास करता है । ये सभी कार्य बिना कुशल संचार प्रणाली के सम्भव नहीं होता है ।
६-निर्णयन एवं संचार ( Decision making and communication ):-   
              सही निर्णयन लेने हेतु प्रबंन्धकों को सही समय पर सही एवं पर्याप्त सूचनाओं, तथ्यों एवं आंकड़ों का ज्ञान प्राप्त करना अनिवार्य होता है । यह कार्य भी बिना प्रभावी संचार प्रणाली के सम्भव नही होता है ।
७-प्रभावशीलता  ( Effectiveness ) :-   
            प्रभावी सेवाएं उपलबध करने के लिये जरूरी है कि स्टाफ के सदस्यों के बीच विचारों एवं मुक्त अदान-प्रदान बना रहे है । किसी संगठन की प्रभावशीलता इसी बात पर निर्भर होती है कि वहां के कर्मचारी आपस में विचारों को कितना आदान-प्रदान करते है और वे एक दूसरे की बात कितनी समझते हैं
८-न्यूनतम व्यय पर अधिकतम उत्पादन ( The minimum expenditure on the maximum output ) :-
                समस्त विवेकशील प्रबंधकों का लक्ष्य अधिकतम, श्रेष्ठतम् व सस्ता उत्पादन करना होता है। उत्पादकता बढा़ने के लिये आवश्यक है कि संगठन में मतभेद न हो, परस्पर सद्भाव हो , जिसमें संचार’ बहुत सहायक सिद्ध हुआ है ।

संचार में चरण ( In the communication phase) :-
         संचार प्रक्रिया में चरणों को चार मुख्य भागों में विभाजित किया जा सकता है:-
A. प्रथम चरण ( First phase )  :- प्रेषक संदेश को कूटसंकेत करता है एवं भेजने के लिये उपयुक्त माध्यम का चयन करता है । प्रेषत किये जाने सन्देश का प्रेषक मौखिक, अमौखिक किसअथवा लिखित रूप में उचित माध्यम से भेजना है
B. द्वितीय चरण  ( Second phase ) :- प्रेषक दूसरे चरण में सन्देश को भेजता है तथा यह प्रयास करता है कि सन्देश प्रेषित करते समय किसी भी प्रकार का व्यवधान न उत्पन्न हो तथा प्राप्तकर्ता बिना किसी व्यवधान के संदेश को समझ सकें ।
C. तृतीय चरण ( Third phase ) :- प्राप्तकर्ता प्राप्त सन्देष का अर्थ निरूपण करता है तथा आवश्यकता के अनुसार उसकी प्रतिपुष्टि करने का प्रयास करता है ।
D. चर्तुथ चरण (Fourth phase ) : - प्रतिपुष्टि चरण में प्राप्तकर्ता प्राप्त सन्देश का अर्थनिरूपण करने के पश्चात् प्रेषक के पास प्रतिपुष्टि करता है ।

संचार के ढंग ( Communication of manner )  :-

वर्तमान समय में संचार की अनेक ढंगों का उपयोग किया जा रहा है जो कि निम्नवत् है-
    1. ज्ञापन (Memo) :- ज्ञापन विधि का प्रयोग अधिकतर आन्तरिक संचार के लिये किया जाता है जहाँ पर सदस्यों तथा सदस्यों से सम्बन्धित फर्म के मध्य संक्षिप्त रूप में सूचना का अदान-प्रदान होता है।
    2. पत्र (Letter) :- वाहय संचार के अधिकतर पत्रों के माध्यमों से सूचना अथवा सन्देश का आदान-प्रदान किया जाता है । यथा-आदेश, व्यापार से सम्बन्धित अभिलेख इत्यादि।
    3. फैक्स (Fax):- फैक्स भी संचार की विधि है जिसके द्वारा त्वरित संन्देश प्राप्तकर्ता तक पहुँचता है ।
    4. र्इ-मेल (E- mail):- सूचनाओं को हस्तांतरित करके के लिये र्इ-मेल के द्वारा त्वरित एवं सुविधाजनक रूप में सन्देश को प्रेषित किया जाता है ।
    5. सूचना (Information) :- सूचना भी संचार की एक प्रविधि है । उदाहरण के लिये किसी संगठन में कर्मचारियों को उनसे सम्बन्धित रोजगार, सुरक्षा, स्वास्थ्य, नियम, कानून तथा कल्याणकारी सुविधायें सूचनाओं द्वारा प्रदान की जाती है ।
    6. सारांश ( Summary) :- सारांश प्रविधिका प्रयोग संचार के लिये अधिकतर मीटिंग में किया गया जाता है।
    7. प्रतिवेदन (Report) :- प्रतिवेदन भी संचार की एक प्रविधि है यथा वित्तीय प्रतिवेदन, समितियों की सिफारिशें, प्रौधोगिकी प्रतिवेदन इत्यादि ।
    8. दूरभाष  (Tel) :- मौखिक संचार के लिये दूरभाष का प्रयोग किया जाता है । दूरभाष प्रविधि का प्रयोग वहाँ पर अधिक किया जाता है जहाँ पर आमने-सामने सम्पर्क स्थापित नहीं हो पाता है ।
    9. साक्षात्कार ( Interview) :- साक्षात्कार प्रविधि का प्रयोग कर्मचारियों के चयन उनकी प्रोन्नति तथा व्यक्तिगत विचार विमर्श के लिये किया जाता है ।
   10. रेडियो (Radio) :- एक निश्चित आवृत्ति पर रेडियो के द्वारा संचार को प्रेषित किया जाता है ।
   11. टी0वी0 (T.V.) :- टी0वी0 का भी प्रयोग संचार के लिये किया जाता है । जिसे एक उचित नेटवर्क के द्वारा देखा व सुना जाता है ।
   12. वीडियों कान्फ्रेन्सिंग  (Video conference) :- वर्तमान समय में वीडियो कान्फ्रेन्सिंग एक महत्वपूर्ण विधि है । जिसमें फोन के तार के द्वारा वीडियों के साथ आवाज को सुना जा सकता है । इसके अतिरिक्त योजना, चित्र, नक्शा, चार्ट, ग्राफ आदि ऐसे ढंग है जिससे संचार को प्रेषित किया जाता है ।






संचार में कारक (In the communication factor) -
                                                                                                                              संचार में कारकों को मुख्य दो भागों में विभाजित किया जा सकता है । एक वे कारक जो संचार को प्रभावी बनाने में सहायक होते है। दूसरे जैसे कारक जो कि संचार व्यवस्था में नकारात्मक भूमिका निभाते है। संचार को प्रोत्साहित करने वाले कारक निम्न है :-
१- विषय का ज्ञान ( knowledge of the subject) : - संचारक को संचारित किये जाने वाले विषय की पूरी जानकारी होनी आवश्यक है। विषय के गहन अध्ययन के अभाव में संचार सफल नहीं हो सकता है।
२- संचार कौशल (Communication skills) : - संचार प्रक्रिया के दो महत्वपूर्ण पहलू है संकेतीकरण एवं संकेत को समझना। संकेतीकरण के अन्तर्गत लेखन एवं वाक्शक्ति आते है तथा संकेत के अर्थनिरूपण में पठन एवं श्रवण जैसी विधाए शामिल है । इसके अतिरिक्त सोचना तथा तर्क करना सफल संचार के लिये आवश्यक है ।
३- संचार माध्यमों का ज्ञान  ( Communication mediums of knowledge ) : - संचार कार्य विन्नि माध्यमों से सम्पन्न होता है । संचार माध्यमों की प्रकृति, प्रयोज्यता एवं उपयोग की विधि के विषय में संचारक को ज्ञान होना चाहिए ।
४- रूचि ( Well ) : - किसी भी कार्य के सफल क्रियान्वयन के लिये आवश्यक है कि कार्यकर्ता अपने कार्य में रूचि ले तथा पूरी तन्मयता के साथ उसका निर्वाह करें । रूचिपूर्वक कार्य सम्पादित करके संचारक न केवल अपनी उन्नति के द्वार खोलना है बल्कि दूसरों की प्रगति का मार्गदर्शक भी बनता है ।
५- अभिवृत्ति ( Aptitude ) : - हर व्यक्ति की अपने कार्य, स्थल तथा सहकर्मियों के प्रति कुछ अभिवृत्तियाँ होती है । ये अभिवृत्तियाँ व्यक्ति की कार्य-सम्पादन शैली को प्रभावित करती है । यदि संचारक अपने कार्य, कार्य-स्थल, सहकर्मियों तथा संचार ग्रहणकर्ता के प्रति आस्थावान हो और सामान्य सौहार्दपूर्ण अभिवृत्ति रखता हो तो वह निश्चित रूप में अपने कार्य में सफल होगा ।
६- विश्वसनीयता  ( Reliability ) : - विश्वसनीयता संचारक का अति महत्वपूर्ण गुण है । संचारक के प्रति विश्वसनीयता सन्देश ग्राºयता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है । संचारक के प्रति ग्रहणकर्ताओं में जितना ही अटूट विश्वास होगा, ग्रहणकर्ता उतनी ही तत्परता, तन्मयता तथा सम्पूर्णता के साथ सन्देश को ग्रहण करेगें ।
७- अच्छा व्यवहार ( Good behavior ) : - संचारक की भूमिका एक मार्ग-दर्शक की होती है । ग्रहणकर्ता के साथ उसका अच्छा व्यवहार सफल संचार-सम्बन्ध को स्थापित कर सकता है। संदेश स्पष्ट एवं सरल होने चाहिये । संचार व्यवस्था में नकारात्मक भूमिका को निभाने वाले कारक निम्न है :-
•  उपयुक्त एवं उचित संचार प्रक्रिया का आभाव
•  वैधानिक सीमायें एवं अनुपयुक्त संचार नीति
•  अनुपयुक्त वातावरण
•  उचित रणनीति का आभाव
•  सरल एवं स्पष्ट भाषा का आभाव
•   प्रेरणा का आभाव 
• संचार कुशलता का आभाव ।

संचार-प्रक्रिया एवं तत्व
 ( Communication-process and elements ) :-
                                                                                                                       संचार एक द्विमार्गीय प्रक्रिया है जिसमें दो या दो से अधिक लोगों के बीच विचारों, अनुभवों, तथ्यों तथा प्रभावों का प्रेषण होता है । संचार प्रक्रिया में प्रथम व्यक्ति संदेश स्रोत (Source) या प्रेषक (Sender) होता है । दूसरा व्यक्ति संदेश को ग्रहण करने वाला अर्थात प्राप्तकर्ता या ग्रहणकर्ता होता है । इन दो व्यक्तियों के मध्य संवाद या संदेश होता है जिसे प्रेषित एवं ग्रहण किया जाता है प्रेषित किये शब्दों से तात्पर्य ‘अर्थ’ से होता है तथा ग्रहणकर्ता शब्दों के पीछे छिपे ‘अर्थ’ को समझने के पश्चात् प्रतिक्रियों व्यक्त करता है। सामान्यत: संचार की प्रक्रिया तीन तत्वों क्रमश: प्रेषक (Sender) सन्देश (Message) तथा प्राप्तकर्ता (Reciver) के माध्यम से सम्पन्न होती है। किन्तु इसके अतिरिक्त सन्देश प्रेषक को किसी माध्यम की भी आवश्यकता होती है जिसकी सहायता से वह अपने विचारों को प्राप्तिकर्ता तक पहुंचाता है।
            अत: कहा जा सकता है कि संचार प्रक्रिया में अर्थों का स्थानान्तरण होता है । जिसे अन्त: मानव संचार व्यवस्था भी कह सकते है।

संचार नेटवर्क (Communicaetion network) :-
                                                                                                                संचार नेटवर्क से तात्पर्य किसी समूह के सदस्यों के बीच विभिन्न पैटर्न से होती है । संचार नेटवक्र का अध्ययन लिमिट्ट, तथा शॉ द्वारा किया गया है । लिमिट्ट तथा शॉ द्वारा किये अध्ययन के आधार पर पाँच तरह के संचार नेटवर्क को पहचान की गयी है । संचार नेट वर्क इस प्रकार है -

1चक्र नेटवर्क (Wheel Network)- इस तरह के नेटवर्क में समूह में एक व्यक्ति ऐसा होता है जिसकी स्थिति अधिक केन्द्रित होती है । उसे लोग समूह के नेता के रूप में प्रत्यक्षण करते है ।

2- श्रंखला नेटवर्क (Chain Network)- श्रंखला नेटवर्क में समूह का प्रत्येक सदस्य अपने निकटमत सदस्य के साथ ही कुछ संचार कर सकता हे । इस तरह के नेटवर्क में सूचना ऊपरी तथा निचली किसी भी दिशा में प्रवाहित हो सकती है।

3वृत्त नेटवर्क (Circle Network)- इस तरह के नेटवर्क में समूह का कोर्इ सदस्य केन्द्रित स्थिति में नहीं होता तथा संचार सभी दशाओं में प्रवाहित होता है।

4वार्इ नेटवर्क (Y Network)- वार्इ नेटवर्क एक केन्द्रित नेटवर्क होता है जिसमें व्यक्ति ऐसा होता है जो अन्य व्यक्तियों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण होता है।

5कमकन नेटवर्क (Comcon Network) - कमकन नेटवर्क एक तरह का खुला संचार होता है जसमें समूह का प्रत्येक सदस्य दूसरे सदस्य से सीधे संचार स्थापित कर सकता है ।


प्रभावी संचार की विशेषतायें
( Effective communication features) :-
 प्रभावी संचार की विशेषतायें निम्नवत् है -
१- संचार का उद्देश्य स्पष्ट होना चाहिए ।
२- संचार की भाषा बोधगम्य, सरल व आसानी से समझ में आने वाली होनी चाहिये ।
३- संचार यथा सम्भव स्पष्ट एवं सभी आवश्यक बातों से युक्त होना चाहिए ।
४- संचार प्राप्तकर्ता की प्रत्याशा के अनुरूप होने चाहिए ।
५- संचार यथासमय अर्थात् सही समय पर होना चाहिये ।
६- संचार पे्रषित करने के पूर्व सम्बन्धित विषय में पूर्ण जानकारी का ज्ञान होना आवश्यक है ।
७- संचार करने से पूर्व परस्पर विश्वास स्थापित करना आवश्यक है ।
८- संचाार में लोचशीलता होनी चाहिये अर्थात् आवश्यकतानुसार उसमें परिवर्तन किया जा सके ।
९- संचार को प्रभावी बनाने के लिये उदाहरणों तथा श्रव्य दृश्य साधनों का प्रयोग किया जाना चाहिए ।
१०- विलम्बकारी प्रवृत्तियों अथवा प्रतिक्रियाओं को व्यवहार में नहीं लाना चाहिए । संचार सन्देशों की एक निरन्तर श्रंखला होनी चाहिये ।
११- एक मार्गीगीय संचार की अपेक्षा द्विमार्गीय संचार श्रेष्ठ होता है ।
१२- सन्देश प्रेषित करते समय ऐसा प्रयास किया जाना चाहिये कि सामाजिक एवं सांस्कृतिक विश्वासों पर किसी प्रकार का कुठाराघात न हो ।
१३- संचार हमेशा लाभप्रद होना चाहिये क्योकि मनुष्य का स्वभाव है कि किसी भी बात में लाभप्रद सम्भावनाओं को देखता है ।
१४- संचार में प्रयोग की जाने वाली विधियाँ या कार्य खर्चीले नही होने चाहिये अर्थात मितव्यियता के सिद्धान्त का पालन करना चाहिए ।
१५- संचार में विभाज्यता का गुण होना चाहिये क्योंकि प्रेषित सन्देश का उद्देश्य पूरे समुदाय या वर्ग के कल्याण में निहित होता है ।
१६- संचार बहुहितकारी होना चाहिये अर्थात बहुजन हिताय बहुजन सुखाय की भावना होनी चाहिये ।

संचार का इतिहास
 ( Communication history) :-                               
                                                                          संचार का इतिहास प्रागैतिहासिक काल से आरम्भ होता है। संचार के अन्तर्गत तुच्छ विचार-विनिमय से लेकर शास्त्रार्थ एवं जनसंचार (mass communication) सब आते हैं। कोई २००,००० वर्ष पूर्व मानव-वाणी के प्रादुर्भाव के साथ मानव संचार में एक क्रान्ति आयी थी। लगभग ३०,००० वर्ष पूर्व प्रतीकों का विकास हुआ एवं लगभग ७००० ईसापूर्व लिपि और लेखन का विकास हुआ। इनकी तुलना में पिछली कुछ शताब्दियों में ही दूरसंचार के क्षेत्र में बहुत अधिक विकास हुआ है।


  प्रमुख घटनाएँ  ( Major events ):-
1- चित्रलिपि का विकास।
2- वर्ण आधारित लिपि का विकास।
3- कागज का आविष्कार।
4- घूर्णी प्रिंटिंग का विकास।
5- यूरोप में समाचार पत्रों का प्रकाशन।
6- फोटोग्राफी का विकास।
7- चलचित्र (सिनेमा) का आविष्कार।
8- विद्युत टेलीग्राफ।
9- दूरभाष।
10- रेडियो - सन् १८८८ में हर्ट्ज ने रेडियो तरंगों पर प्रयोग किये।
11- दूरदर्शन - सन् १९२३ में बेयर्ड ने टेलीविजन सिस्टम का पेटेंट लिया।
12- अन्तरजाल का विकास ।
13- मोबाइल फोन का विकास ।